बतिया रहे थे गाँधी और मै था चुप
पूछा उन्होंने के क्या आज़ादी के बाद
तुम्हारी किस्मत का ताला खुला?
खामोशी तोड़ मै सुबक कर बोला
आरजू थी खुशियों की अमन तक ना मिला
जला दिए गए ज़िंदा उन्हें कफ़न तक ना मिला
क़त्ल कर दिए गए मजलूम और मासूम
दरिंदो को ताक़त आजमाने फौलादी बदन तक ना मिला
चाहत थी जन्नत की चमन तक ना मिला ….
किस्से कहानियो में भी उतर आया धर्मयुद्ध
बूढों को सुनाने के लिए कोई फ़साना ना मिला
प्यार बदला नफरत में , ख़ुशी दंगो की हसरत में
राष्ट्रप्रेम का तो कोई दीवाना ना मिला
चाहत थी जन्नत की चमन तक ना मिला….भाईचारा और इंसानियत के सौ तुकडे हो गए
सहिष्णुता और सदभाव इतिहास के पन्नो में खो गए
फिजा खुशियों की धर्मान्धता में बदल गयी
भ्रष्टाचार की आंधी मुल्क में मचल गयी
देशभक्ति का तो कोई अफसाना ना मिला
चाहत थी जन्नत की चमन तक ना मिला….
“निगाहों” से उनके भी “अश्क” छलकने लगे
फिर भी धाडस बंधाया उन्होंने मुझे और कहा के
शांति का परचम मुल्क में लहराएगा
ज़रूरी नहीं है उसके लिए एक और गाँधी
बस काफी है “युवको” के जज़्बात की आंधी”
इतना कह के गांधी लुप्त हो गए
और मेरे नैन भविष्य के सपनो में खो गए…