पुराने सामान मे इक तस्वीर मिली थी
भोला सा चेहरा, प्यारी निगाहे
मासूम सी मुस्कान, और शरारती अदाये
कुछ पल उसे देखकर सुर्खरू सा हुआ था
मा ने कहा ये तस्वीर है तेरी
है तेरे बचपन कि निशानी
जानकर ये दो “अश्क” छलके “निगाहो”से
सोचता हु ये झिन्दगी हमे क्या से क्या बनाती है
कभी पढाई कि जद्दोजहत
कभी आशिकी मे रुलाती है
कभी ऑफिस कि टेन्शन
कभी यारो से मिलाती है
वक़्त के साथ सब यादे धुंदला सी गयी है आंखो से
बस वो धुंदली सी “तस्वीर” अब तक याद आती है…
nice .. nice… very nice bro
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Yeh shaayari deel se likhi gayee hai shyahi se nahi
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