मुझे किसी से मोहब्बत नहीं सिवा तेरे
मुझे किसी की ज़रूरत नहीं सिवा तेरे
मेरी नज़रों को थी तलाश जिस की बरसों से
किसी के पास वो सूरत नहीं सिवा तेरे
मेरे दिल के बंजार रेगिस्तान को चमन बना सके
किसी के पास मुस्कान का ऐसा गुलिस्तां नहीं सिवा तेरे
मेरे लबो को अब कुछ एक प्यास है सदियों से
किसी के पास वो शबनम नही सिवा तेरे
किस्मत की लकीरों से लड़ने की आदत सी है
खुदा की इतनी इनायत नहीं सिवा तेरे
तकदीर से जंग ही है जिंदगी मेरी
मेरे दिल में और कोई आरज़ू नहीं सिवा तेरे
जो मेरे सख्त दिल को बचपन की राह चला सके
किसी में इतनी मासूमियत नहीं सिवा तेरे
जो मेरे दिल और मेरी जिंदगी से खेल सके
किसी को इतनी इजाज़त नहीं सिवा तेरे …
poem by: Dr. Chetan Kabra